veer SHAHID KESARI CHAND ji KO SHAT SHAT NAMAN

आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के जौनसार के वीर सपूत केसरी चंद का नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।

अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर, 1920 को जौनसार के क्यावा गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई थी। इसके बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी।

बचपन से ही साहसी
केसरी चंद बचपन से ही साहसी थे और खेलों में उनकी विशेष रुचि थी। उनमें नेतृत्व का गुण और देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। कहा जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उन्होंने कांग्रेस की बैठक और कार्यक्रमों में भी भाग लिया था।

इसी भावना के कारण वह 10 अप्रैल 1941 में रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स में भर्ती हो गए। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध के पूरे जोरों पर था। 29 अक्टूबर 1941 पर केसरी चंद, मलाया की लड़ाई के मोर्चे पर तैनात किया गया है। इस दौरान केसरी चंद को जापानी सेना ने बंदी बना लिया था।

वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे " तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ' से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद सेना में भी शामिल हुए। उनके अदम्य साहस के कारण उन्हें जोखिम भरा कार्य सौंपा गया। इसके बाद अंग्रेजों के पुलिस को उड़ाने के प्रयास में केसरी चंद को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और दिल्ली में जिला जेल भेज दिया।

24 साल की उम्र में देश पर न्यौछावर किया जीवन
ब्रिटिश राज्य के खिलाफ साजिश का अपराध में केसरी चंद को मौत की सजा की सजा सुनाई। तीन मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में उत्तराखंड के इस वीर सेनानी को फांसी दे दी गई। आज इनकी शहादत को भले ही राज्य सरकार भूल गई है, लेकिन जौनसार के लोग इन्हें कभी नहीं भूल सकते।

शहीद केसरी चंद के सम्मान में चकराता स्थित रामताल गार्डन में हर साल तीन मई को 'वीर केसरी चंद मेला' आयोजित किया जाता है। इनके सम्मान में कई गीत भी रचे गए हैं।
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