5वॉ धाम हनोल


। महासू देवता मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर दूर और मसूरी से 156 किमी, चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित हैं।


Hanol is a popular village on the banks of Tons river in Chakrata. Hanol is named after the Brahmin Huna Bhatt. Surrounded by the lush green hills, Hanol has a scenic location and a tourist spot near Chakrata. But Hanol is more famous for the Mahasu Devta Temple. Visitors and devotees from far away places visit Mahasu Devta Temple for blessingsउत्तराखंड में त्यूनी-मोरी रोड पर स्थित महासू देवता मंदिर में आस्‍था और श्रद्घा का अनूठा संगम देखने को मिलता है। 9वीं शताब्दी में बनाया गया महासू देवता का मंद‌िर काफी प्राचीन है।
मिश्रित शैली की स्थापत्य कला
मिश्रित शैली की स्थापत्य कलामंदिर में मिश्रित शैली की स्थापत्य कला देखने को मिलती है। इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण में भी शामिल किया गया है। महासू देवता मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर दूर और मसूरी से 156 किमी, चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार इस गांव का हुना भट्ट, एक ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है। इससे पहले यह जगह चकरपुर के रूप में जानी जाती थी। और पांडव लाक्षा ग्रह से निकलकर यहां आए थे। हनोल का मंदिर लोगों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है।

भगवान शिव का दूसरा रूप है महासू
महासू देवता भगवान शिव के ही रूप हैं। इस‌के साथ ही यह मान्यता भी है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था। महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश के ईष्ट देव हैं। यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन से नमक की भेंट आती है।

मंदिर के साथ छोटे-छोटे पत्‍थर हैं। जो आकार में तो बहुत छोटे हैं, लेकिन इन्हें उठा पाना हर किसी के बस की बात नहीं है।यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से महासू की पूजा करता है वह ही इन पत्थरों को उठा सकता है।

अपने आप जलती है ज्योत
मंदिर के गृह गर्भ में भक्तों का जाना मना है। केवल पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। इसके साथ ही मंदिर में एक ज्योत हमेशा अपने आप जलती रहती है।

मंदिर के गृह गर्भ में पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है इसके बारे में किसी को भी पता नहीं है। महासू देवता के मंदिर में उत्तराखंड के साथ ही जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली से भक्त काफी संख्या में भक्त पहुंचते हैं।प्रकृति की गोद जैसे मनोरम और सुरम्य वातावरण में उत्तरकाशी के सीमान्त क्षेत्र में टौंस नदी के तट पर बसा हनोल स्थित महासू देवता मन्दिर कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है। लम्बे रास्ते की उकताहट और दुर्गम रास्ते से हुई थकान, मन्दिर में पहुंचते ही छूमन्तर हो जाती है और एक नयी ऊर्जा का संचार होता है। "महासू" देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द "महाशिव" का अपभ्रंश है। चारों महासू भाईयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है। जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं। उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता की पूजा होती है। इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मन्दिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है। आज भी महासू देवता के उपासक मन्दिर में न्याय की गुहार और अपनी समस्याओं का समाधान मांगते आसानी से देखे जा सकते हैं। महासू देवता के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में कई मन्दिर हैं जिनमें अलग अलग रूपों की अलग-अलग स्थानों पर पूजा होती है। टौंस नदी के बायें तट पर बावर क्षेत्र में हनोल में मन्दिर में बूठिया महासू (बौठा महासू) तथा मैन्द्रथ नामक स्थान पर बासिक महासू की पूजा होती है। पबासिक महासू की पूजा टौंस नदी के हिमाचल से सटे उत्तरकाशी जिले के सीमांत क्षेत्र हनोल में स्थित है महासू देवता का मंदिर। बावर परगना में टौंस नदी के बाएं तट पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए उत्तरकाशी से बड़कोट, नौगांव, पुरोला व मोरी होते हुए 160 किमी तथा देहरादून से चकराता-त्यूनी होते हुए 170 किमी मोटर मार्ग से पहुंचा जा सकता है। स्थानीय उपलब्ध किंवदंतियों   के अनुसार महासू देवता का आगमन इस क्षेत्र में करीब छह सौ वर्ष पूर्व हुआ था।Jonsarimahi. Blogspot. Com




हनोल को पाचया धाम बनाने के लिए थोड़ा सा प्रयास करते हैं
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